हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समानै। नीर सनेही कों लाय कलंक निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै। प्रीति की रीति सु क्यों समुझै जड़ मीत के पानि परें कों प्रमानै। या मन की जु दसा घनआनंद जीव की जीवनि जान ही जानै।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ